पंजाब विधानसभा चुनाव: 25 वर्ष से सुनाम को जीत नहीं सकी है कांग्रेस, धडे़बंदी का लाभ उठाते हैं विरोधी
पंजाब की सुनाम विधानसभा सीट पर बार बार चेहरे बदलना कांग्रेस पर भारी पड़ता रहा है। कांग्रेस, इस सीट पर नए चेहरे को उतारने का सिलसिला लंबे समय से जारी रखे हुए हैं। पार्टी के इन्हीं फैसलों की वजह से स्थानीय कांग्रेस में खींचतान व धडे़बंदी बढ़ती गई। यहां तक कि पूर्व मंत्री स्वर्गीय भगवान दास अरोड़ा परिवार में दरार तक पड़ गई थी। अरोड़ा परिवार के भीतर ही टिकट की अदला बदली के कारण आपसी रिश्तों में खटास आ गई। पिछले पच्चीस साल से कांग्रेस इस सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी है।
इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो कांग्रेस ने 1972 में कृष्ण चंद को प्रत्याशी बनाया था। 1977 में कुलबीर सिंह को, 1980 दलीप सिंह को, 1985 में दोबारा कृष्ण चंद, 1992 भगवान दास अरोड़ा, 1997 में भगवान दास अरोड़ा, 2002 में सोनिया अरोड़ा, 2007 व 2012 में अमन अरोड़ा, 2017 में दामन बाजवा को चुनाव मैदान में उतारा था। बेअंत सिंह सरकार में मंत्री रहे भगवान दास अरोड़ा यहां से लगातार दो बार चुनाव जीतने में सफल रहे थे। शेष प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। 2022 के चुनाव के लिए फिर से सुनाम सीट पर चेहरे बदलने की अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि दामन बाजवा मजबूत दावेदार हैं।

सुनाम सीट से टिकट के दावेदार पिछले एक सप्ताह से दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं और शनिवार तक फैसले की उम्मीद है। जानकारों का मानना है कि नए चेहरे के साथ कांग्रेस का प्रयोग, पार्टी में अंदरूनी खींचतान को बढ़ा रहा है। चुनाव लड़ने वाले नेता अपनी सियासी जमीन मजबूत तो करते हैं, लेकिन पार्टी किसी नए चेहरे को आगे कर देती है। ऐसे में विरोधी दल इस धडे़बंदी का लाभ उठाते आ रहे हैं।
कांग्रेस छोड़ने के बाद चुनाव जीते अमन अरोड़ा
कांग्रेस को छोड़ने के बाद अमन अरोड़ा, विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे। अरोड़ा द्वारा कांग्रेस छोड़ने की वजह खींचतान व धडे़बंदी माना गया। आम आदमी पार्टी में शामिल होने के बाद अरोड़ा ने सुनाम सीट से 2017 का विस चुनाव लड़ा और 30 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे थे।