Makar Sankranti And Uttarayan 2021: जानिए मकर संक्रांति और सूर्य के उत्तरायण का महत्व
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मकर संक्रांति पर सूर्यदेव दक्षिणायण से उत्तरायण होते हैं। सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना ‘उत्तरायण ‘ तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना ‘दक्षिणायण ‘ कहलाता है। उत्तरायण काल को ऋषि मुनियों ने जप, तप और सिद्धि प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना है। इसे देवताओं का दिन माना जाता है। गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा है कि उत्तरायण के छह माह में पृथ्वी प्रकाशमय होती है। इसके अलावा उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि माना गया है। भावात्मक रूप से उत्तरायण शुभ और प्रकाश का प्रतीक है, तो दक्षिणायन कंलक कालिमा का मार्ग मानते हैं। श्रीकृष्ण ने इसे पुनरावृत्ति देने वाला धूम्र मार्ग वाला कहा है
मकर संक्रांति पर भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे
महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था। एक अन्य कथा के अनुसार, महाराजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए वर्षों की तपस्या करके गंगा जी को पृथ्वी पर आने के लिए बाध्य कर दिया था और मकर संक्रांति पर ही भगीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था।
उत्तरायण पर दान का महत्व Importance Of Uttarayan
सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किंतु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। ऋषियों ने गाया भी है। सूर्य: आत्मा जगतुस्थ अर्थात सूर्य जगत की उदित होती हुई आत्मा है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि उत्तरायण के समय दिया गया दान सौ गुना बढ़कर फिर मिलता है। इस समय सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है।
Importance Of Uttarayan and Dakshinayan In Astrology: अयन का अर्थ होता है परिवर्तन। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक वर्ष में दो अयन होते हैं। साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है। सूर्य 6 महीने उत्तरायण और 6 महीने दक्षिणायन में रहता है। आइए जानते हैं सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन के बारे में विस्तार से…
उत्तरायण और दक्षिणायन
हिंदू शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य मकर से मिथुन राशि तक भ्रमण करते हैं, तो इस अंतराल को उत्तरायण कहते हैं। सूर्य के उत्तरायण की यह अवधि 6 माह की होती है। वहीं जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करते हैं तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं। दक्षिणायन को नकारात्मकता का और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। सौरमास की शुरुआत सूर्य संक्रांति से होती है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति को सौरमास कहते हैं।
उत्तरायण | Uttarayan
– उत्तरायण मास को देवी- देवताओं का दिन माना गया है।
– उत्तरायण के 6 महीनों के दौरान नए कार्य जैसे- गृह प्रवेश , यज्ञ, व्रत, अनुष्ठान, विवाह, मुंडन आदि जैसे कार्य करना शुभ माना जाता है।
– उत्तरायण के समय दिन लंबा और रात छोटी होती है।
– उत्तरायण में तीर्थयात्रा, धामों के दर्शन और उत्सवों का समय होता है।
– उत्तराणण के दौरान तीन ऋतुएं होती है- शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म
दक्षिणायन | Dakshinayan
– मान्यताओं के अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओं की रात्रि मानी गई है।
– दक्षिणायन के समय में रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं।
– अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 21/22 जून से दक्षिणायन आरंभ होता है।
– ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दक्षिणायन होने पर सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करता है।
– दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं।
– दक्षिणायन के दौरान वर्षा, शरद और हेमंत, ये तीन ऋतुएं होती हैं।
– तामसिक प्रयोगों के लिए दक्षिणायन का समय उपयुक्त होता है।
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